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ब्रह्मांड की सृष्टि | Creation of the Universe

  • gokahaani
  • 2 days ago
  • 1 min read
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भारतीय मिथक के अनुसार ब्रह्मांड की सृष्टि का अत्यंत गहरा और जटिल विवरण मिलता है। हिंदू धर्म में इसे विभिन्न ग्रंथों और उपनिषदों में विभिन्न रूपों में बताया गया है, जिनमें से प्रमुख "ऋग्वेद", "पुराण" और "भगवद गीता" हैं। यहां, सृष्टि के जन्म, विकास और लय की प्रक्रियाओं को एक चक्रीय रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उत्पत्ति, पालन और संहार के चक्र लगातार चलते रहते हैं।

सृष्टि की शुरुआत का वर्णन बहुत ही रहस्यमय तरीके से किया गया है। "ऋग्वेद" में सृष्टि के प्रारंभ को एक "निराकार अंधकार" से जोड़ा गया है, जिसे "आदि तामस" कहा जाता है। यह अंधकार और शून्य की अवस्था थी, जिसमें कोई रूप, समय या स्थान नहीं था। इस शून्यता में केवल "ब्रह्म" नामक परम तत्व विद्यमान था, जिसे सर्वव्यापी और अनंत माना गया है। इस स्थिति में ब्रह्म ने अपनी इच्छा से सृष्टि की रचना का निर्णय लिया और "संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण" हुआ।

"पुराणों" के अनुसार, ब्रह्मा जी, जिन्हें सृष्टि का निर्माता माना जाता है, उनके द्वारा ब्रह्मांड की रचना की जाती है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने कमल के फूल से उत्पन्न होकर इस सृष्टि की रचना की। यह कमल ब्रह्मा जी के नाभि से उत्पन्न हुआ था, और इसके ऊपर सृष्टि के सभी तत्वों का निर्माण हुआ। ब्रह्मा ने पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) का निर्माण किया, और इन तत्वों से सृष्टि के अन्य जीव-जंतु, वनस्पतियां और मनुष्य आदि उत्पन्न हुए।

एक अन्य महत्वपूर्ण कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार "मछ" (मात्स्य) रूप में प्रकट होकर समुद्र में जलमग्न हुई पृथ्वी को बचाने के लिए ब्रह्मा को मार्गदर्शन देते हैं। इस प्रक्रिया में सृष्टि के सारे जीवों और ब्रह्मा के ज्ञान की पुनः स्थापना की जाती है।

इसके अलावा, भारतीय मिथक के अनुसार, प्रत्येक ब्रह्मांड का जन्म और संहार एक निश्चित समय चक्र के अनुसार होता है। इसे "युग चक्र" कहा जाता है, जिसमें चार युग होते हैं—सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। प्रत्येक युग में सृष्टि का विभिन्न रूपों में उत्थान और पतन होता है। सृष्टि का संहार भगवान शिव के "काल" रूप में होता है, जब वह नृत्य करते हुए ब्रह्मांड के सभी पदार्थों का संहार करते हैं और फिर नई सृष्टि का आरंभ होता है।

इस प्रकार भारतीय मिथक के अनुसार, सृष्टि की प्रक्रिया अनंत और निरंतर चलने वाला चक्रीय रूप है, जिसमें उत्पत्ति, पालन और संहार के चरण अनवरत चलते रहते हैं। यह ब्रह्मांड का रूपक और दर्शन बताता है कि सब कुछ परिवर्तनशील है, और सृष्टि का यह चक्र एक अटल सत्य है।

 
 
 

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